The best Side of Shodashi
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The day is observed with good reverence, as followers visit temples, supply prayers, and engage in communal worship gatherings like darshans and jagratas.
It was right here way too, that the great Shankaracharya himself put in the image of the stone Sri Yantra, Probably the most sacred geometrical symbols of Shakti. It could possibly however be seen right now in the inner chamber of your temple.
काञ्चीवासमनोरम्यां काञ्चीदामविभूषिताम् ।
साम्राज्ञी चक्रराज्ञी प्रदिशतु कुशलं मह्यमोङ्काररूपा ॥१५॥
वर्गानुक्रमयोगेन यस्याख्योमाष्टकं स्थितम् ।
This mantra retains the power to elevate the head, purify views, and hook up devotees for their greater selves. Here i will discuss the in depth benefits of chanting the Mahavidya Shodashi Mantra.
वन्दे सर्वेश्वरीं देवीं महाश्रीसिद्धमातृकाम् ॥४॥
सा नित्यं नादरूपा त्रिभुवनजननी मोदमाविष्करोतु ॥२॥
हन्यादामूलमस्मत्कलुषभरमुमा भुक्तिमुक्तिप्रदात्री ॥१३॥
The Tripurasundari temple in Tripura condition, locally often called Matabari temple, was initial Started by Maharaja Dhanya Manikya in 1501, although it was most likely a spiritual pilgrimage website For a lot of generations prior. This peetham of electricity was at first meant to be a temple for Lord Vishnu, but due to a revelation which the maharaja experienced within a desire, He commissioned and put in Mata Tripurasundari within its chamber.
यहां पढ़ें click here त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥११॥
The worship of Goddess Lalita is intricately related While using the pursuit of both equally worldly pleasures and spiritual emancipation.
यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।